Saturday 28 February 2015

ज़िंदगी और जंग

रिश्तों को टूटता देख रहा हूं
बंधन को बिखरता देख रहा हूं
काश मैं वक्त को रोक देता
सबकुछ हाथों से सरकता देख रहा हूं

हंसी भी थी
खुशी भी थी
मंज़िल भी थी
रास्ते भी थे
पर सब निकलता देख रहा हूं

वो कहते हैं कि सब ठीक होगा
वो कहते हैं कि बिगड़ी भी बन जाएगी
वो कहते हैं कि वक्त सब ठीक कर देगा
पर वो नहीं जानते की मैं वक्त को 
फिसलता देख रहा हूं

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