इसमें कोई शक नहीं है कि अरविन्द केजरीवाल ने इस देश कि राजनीती को एक नयी दिशा देने कि कोशिश की है । केजरीवाल के अच्छा सबक दिया है इन चुनावो से । आज के बाद शायद कोई नेता आम आदमी से यह नहीं कहेगा कि अपनी मांगे पूरी करनी है चुनाव लड़ लो :) ।
मुझे समझ मे नही आता की क्या लोकतंत्र मे वोट इमानदारी को ही दिया जाए.
क्या इमानदारी भी एक ब्राँड है जिसपे लेबल चिपक जाए वो इमानदार है.
क्या पार्टियाँ भी चोर लुटेरा भ्रष्ट या इमानदार होती है .
एक उदाहरण भाजपा अपने उद्भव के पहले Party with difference कही जाती थी. लेकिन सत्ता हाथ मे आते ही दामन दागदार हो गया. तो कोई नई पार्टी को हम औरोँ से अलग कैसे मान लेँ, जो चुनाव मे हर हथियार का इस्तेमाल कर रही है जैसा दुसरे दल कर रहे है.
रही बात केजरीवाल की तो उनकी इमानदारी भी सँदिग्ध रही है औरोँ की कमीज से इनकी कमीज थोडा ज्यादा साफ दिखे तो यह कोई पैमाना नही है इमानदारी नापने का .
रामत्व और रावणत्व के बीच भरत्वय को ढुँढने की ये महज कोशिश है
अन्ना आन्दोलन के दौरान दिल्ली का युवा वर्ग सडको पर था एक ऐसे आन्दोलन के लिए जिसकी विषय वस्तु उनके समझ के बाहर था
दामिनी प्रकरण मे भी युवा सङको पर उतरा इन आन्दोलनो का हश्र चाहे जो हो दिल्ली का युवा वर्ग व्यवस्था के खिलाफ खडे होने मे खुद को सहज पाता दिखा और उसके इसी सोँच को राजनीतिक अवसर मेँ भुनाने का प्रयास केजरीवाल ने किया है बाकि तो वो लोग है ही जिन्हे तमाशा देखने मे मजा आता है चाहे वो बँदर का हो या साँप का...अरविंद केजरीवाल ने राजनीति को बदलने का साहसिक प्रयास तो किया ही । हममें से कई राजनीतिक व्यवस्था को लेकर मलाल करते रहते हैं लेकिन अरविंद ने कुछ कर के देखने का प्रयास किया । कुछ हज़ार लोगों को प्रेरित कर दिया कि राजनीति को बदलने की पहली शर्त होती है इरादे की ईमानदारी । अरविंद ने जमकर चुनाव लड़ा । उनका साथ देने के लिए कई लोग विदेश से आए और जो नहीं आ पाये वो इस बदलाव पर नज़रें गड़ाए रहें । आज सुबह जब मैं फ़ेसबुक पर स्टेटस लिख रहा था तब अमरीका से किन्हीं कृति का इनबाक्स में मैसेज आया । पहली बार बात हो रही थी । कृति ने कहा कि वे जाग रही हैं । इम्तहान की तरह दिल धड़क रहा है । ऐसे कई लोगों के संपर्क में मैं भी आया ।
मुझे समझ मे नही आता की क्या लोकतंत्र मे वोट इमानदारी को ही दिया जाए.
क्या इमानदारी भी एक ब्राँड है जिसपे लेबल चिपक जाए वो इमानदार है.
क्या पार्टियाँ भी चोर लुटेरा भ्रष्ट या इमानदार होती है .
एक उदाहरण भाजपा अपने उद्भव के पहले Party with difference कही जाती थी. लेकिन सत्ता हाथ मे आते ही दामन दागदार हो गया. तो कोई नई पार्टी को हम औरोँ से अलग कैसे मान लेँ, जो चुनाव मे हर हथियार का इस्तेमाल कर रही है जैसा दुसरे दल कर रहे है.
रही बात केजरीवाल की तो उनकी इमानदारी भी सँदिग्ध रही है औरोँ की कमीज से इनकी कमीज थोडा ज्यादा साफ दिखे तो यह कोई पैमाना नही है इमानदारी नापने का .
रामत्व और रावणत्व के बीच भरत्वय को ढुँढने की ये महज कोशिश है
अन्ना आन्दोलन के दौरान दिल्ली का युवा वर्ग सडको पर था एक ऐसे आन्दोलन के लिए जिसकी विषय वस्तु उनके समझ के बाहर था
दामिनी प्रकरण मे भी युवा सङको पर उतरा इन आन्दोलनो का हश्र चाहे जो हो दिल्ली का युवा वर्ग व्यवस्था के खिलाफ खडे होने मे खुद को सहज पाता दिखा और उसके इसी सोँच को राजनीतिक अवसर मेँ भुनाने का प्रयास केजरीवाल ने किया है बाकि तो वो लोग है ही जिन्हे तमाशा देखने मे मजा आता है चाहे वो बँदर का हो या साँप का...अरविंद केजरीवाल ने राजनीति को बदलने का साहसिक प्रयास तो किया ही । हममें से कई राजनीतिक व्यवस्था को लेकर मलाल करते रहते हैं लेकिन अरविंद ने कुछ कर के देखने का प्रयास किया । कुछ हज़ार लोगों को प्रेरित कर दिया कि राजनीति को बदलने की पहली शर्त होती है इरादे की ईमानदारी । अरविंद ने जमकर चुनाव लड़ा । उनका साथ देने के लिए कई लोग विदेश से आए और जो नहीं आ पाये वो इस बदलाव पर नज़रें गड़ाए रहें । आज सुबह जब मैं फ़ेसबुक पर स्टेटस लिख रहा था तब अमरीका से किन्हीं कृति का इनबाक्स में मैसेज आया । पहली बार बात हो रही थी । कृति ने कहा कि वे जाग रही हैं । इम्तहान की तरह दिल धड़क रहा है । ऐसे कई लोगों के संपर्क में मैं भी आया ।
अरविंद ने बड़ी संख्या में युवाओं को राजनीति से उन पैमानों पर उम्मीद करने का सपना दिखाया जो शायद पुराने स्थापित दलों में संभव नहीं है । ये राजनीतिक तत्व कांग्रेस बीजेपी में भी जाकर अच्छा ही करेंगे । कांग्रेस और बीजेपी को भी आगे जाकर समृद्ध करेंगे । कौन नहीं चाहता कि ये दल भी बेहतर हों । मैं कई लोगों को जानता हूँ जो अच्छे हैं और इन दो दलों में रहते हुए भी अच्छी राजनीति करते हैं । ज़रूरी है कि आप राजनीति में जायें । राजनीति में उच्चतम नैतिकता कभी नहीं हो सकती है मगर अच्छे नेता ज़रूर हो सकते हैं ।
एक्ज़िट पोल में आम आदमी पार्टी को सीटें मिल रहीं हैं । लेकिन आम आदमी पार्टी चुनाव के बाद ख़त्म भी हो गई तब भी समाज का यह नया राजनीतिक संस्करण राजनीति को जीवंत बनाए रखेगा । क्या कांग्रेस बीजेपी चुनाव हार कर समाप्त हो जाती है ? नहीं । वो बदल कर सुधर कर वापस आ जाती है । अरविंद से पहले भी कई लोगों ने ऐसा प्रयास किया । जेपी भी हार गए थे । बाद में कुछ आई आई टी के छात्र तो कुछ सेवानिवृत्त के बाद जवान हुए दीवानों ने भी किया है । हममें से कइयों को इसी दिल्ली में वोट देने के लिए घर से निकलने के बारे में सोचना पड़ता है लेकिन अरविंद की टोली ने सोचने से आगे जाकर किया है ।
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